समास
समास ( Samas )
समास शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘संक्षिप्तीकरण’। दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं। समास शब्द की उत्पति – सम + अस् धातु + घञ प्रत्यय से हुई है ।
परिभाषा –
सामासिक शब्द :- समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) लुप्त हो जाते हैं।
जैसे :- राजपुत्र।
समास – विग्रह :- सामासिक शब्दों के बीच के संबंध को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है।
जैसे :- राजपुत्र-राजा का पुत्र।
समास के भेद :-
- और शब्द जहां लुप्त हो द्वंद बने समास
- संख्यावाची प्रथम पद आता द्विगु के पास
- आता द्विगु के पास बना कर्म विशेषण
- अव्ययीभाव में हो जाता क्रिया विशेषण
- कह गिरधर कविराज बहुब्रीहि अर्थ अनेक
- तत्पुरुष में हो जाता लुप्त चिन्ह कारक का
समास के छः भेद होते हैं :-
- अव्ययीभाव
- तत्पुरुष
- द्विगु
- द्वन्द्व
- बहुव्रीहि
- कर्मधारय
1. अव्ययीभाव समास :- इस समास का प्रथम पद(पूर्व पद) प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। अथवा शब्द की पुनरावृति हो सकती है । अथवा उपसर्ग का प्रयोग किया जाता है । अथवा क्रिया विशेषण के रूप मे होती है ।
जैसे :- यथाशक्ति (शक्ति के अनुसार), आमरण (मृत्यु कर) न् इनमें यथा और आ अव्यय हैं।
कुछ अन्य उदाहरण :-
- आजीवन – जीवन-भर
- अनुगमन – गमन के पीछे गमन
- यथासामर्थ्य – सामर्थ्य के अनुसार
- यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
- यथाविधि- विधि के अनुसार
- यथाक्रम – क्रम के अनुसार
- भरपेट- पेट भरकर
- हररोज़ – रोज़-रोज़
- रातोंरात – रात ही रात में
- प्रतिदिन – प्रत्येक दिन
- बेशक – शक के बिना
- निडर – डर के बिना
- नीरोग – रोग रहित
- निस्संदेह – संदेह के बिना
- प्रतिवर्ष – हर वर्ष
- हाथोंहाथ – हाथ ही हाथ में
- पंचगंगम – पाँच गंगाए
नोट : – नदी नाम शब्द के पहले यदि संख्यावाची शब्द आता है तो अव्ययीभाव समास होगा ।
अव्ययीभाव समास की पहचान :- इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास लगाने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता।
2. तत्पुरुष समास :- जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। और कारक चिन्हो का लोप हो जाता है ।
जैसे :- तुलसीदासकृत = तुलसी द्वारा कृत (रचित)
ज्ञातव्य – विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है।
विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद हैं :-
- कर्म तत्पुरुष ( कारक चिन्ह – “को“ ) – (स्वर्गप्राप्त – स्वर्ग को प्राप्त)
- करण तत्पुरुष ( कारक चिन्ह – “से“ या `के द्वारा` ) – (रेखांकित – रेखा के द्वारा अंकित )
- संप्रदान तत्पुरुष ( कारक चिन्ह – “के लिए“ ) – (रसोईघर – रसोई के लिए घर)
- अपादान तत्पुरुष ( कारक चिन्ह – “से“ अलग होने के अर्थ मे ) – ( बंधनमुक्त – बंधन से मुक्त )
- संबंध तत्पुरुष ( कारक चिन्ह – “का, के, की ) – (राजभाषा – राज्य की भाषा )
- अधिकरण तत्पुरुष ( कारक चिन्ह – “मे, पर “ ) – (नगरवास – नगर में वास)
तत्पुरुष समास के प्रकार :-
नञ तत्पुरुष समास
जिस समास में पहला पद निषेधात्मक ( न, अन, अ, अना ) हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। समास विग्रह करते समय रहित शब्द जुड़ जाता है ।
जैसे :-
- असभ्य – न सभ्य
- अनंत – न अंत
- अनादि – न आदि
- असंभव – न संभव
3. कर्मधारय समास :- जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान ( जिससे तुलना की जाए ) -उपमेय ( जिसकी तुलना की जाए ) का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है।
जैसे :-
- चंद्रमुख – चंद्र जैसा मुख
- कमलनयन – कमल के समान नयन
- देहलता – देह रूपी लता
- दहीबड़ा – दही में डूबा बड़ा
- नीलकमल – नीला कमल
- पीतांबर – पीला अंबर (वस्त्र)
- सज्जन – सत् (अच्छा) जन
- नरसिंह – नरों में सिंह के समान
4. द्विगु समास :- जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो और दूसरा पद संज्ञावाची हो । उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है।
जैसे :-
- नवग्रह – नौ ग्रहों का समूह
- दोपहर – दो पहरों का समाहार
- त्रिलोक – तीन लोकों का समाहार
- चौमासा – चार मासों का समूह
- नवरात्र – नौ रात्रियों का समूह
- शताब्दी – सौ अब्दो (वर्षों) का समूह
- अठन्नी – आठ आनों का समूह
- त्रयम्बकेश्वर – तीन लोकों का ईश्वर
5. द्वन्द्व समास :- जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं लगता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है।
जैसे :-
- पाप – पुण्य पाप और पुण्य
- अन्न – जल अन्न और जल
- सीता – राम सीता और राम
- खरा – खोटा खरा और खोटा
- ऊँच – नीच ऊँच और नीच
- राधा – कृष्ण राधा और कृष्ण
6. बहुव्रीहि समास :- जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।
जैसे :-
- दशानन दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
- नीलकंठ नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
- सुलोचना सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी
- पीतांबर पीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्ण
- लंबोदर लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी
- दुरात्मा बुरी आत्मा वाला ( दुष्ट)
- श्वेतांबर श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती जी
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर :-
कर्मधारय में समस्त – पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। जैसे :- नीलकंठ = नीला कंठ। बहुव्रीहि में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञादि का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है। जैसे :- नील+कंठ = नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव।
संधि और समास में अंतर :-
संधि वर्णों में होती है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है।
जैसे :- देव + आलय = देवालय।
समास दो पदों में होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है।
जैसे :- माता और पिता = माता – पिता।
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