अकबर की राजपूत नीति का वर्णन करें
प्रश्न : अकबर की राजपूत नीति का वर्णन
करें।
उत्तर : अकबर एक महानू राजनीतिक सूझ-बूझ
रखने वाला दूरदर्शी राजनीतिज्ञ था। उसकी
राजपूत-सम्बन्धी नीति भारतीय इतिहास में
सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। मुसलमान शासकों में अकबर ही प्रथम बादशाह था, जिसने राजपूतों की
मित्रता प्राप्त की और उनकी सेवाओं को उचित सम्मान देकर अपने साम्राज्य की नींव को शक्तिशाली
बनाया। '
कारण : अकबर यह भली-भाँति जानता था कि
भारत एक हिन्दूप्रधान देश है। राजपूत हिन्दुओं के
राजनीतिक और सैनिक नेता हैं। अत: बिना
राजपूतों के सहयोग और समर्थन के कोई भी साम्राज्य दृढ़ एवं . स्थायी नहीं रह सकता।
अकबर ने मालवा, ग्वालियर, जौनपुर आदि पर अधिकार
कर अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया
था। उस नवजात साम्राज्य की सुरक्षा एवं
स्थायित्व के लिये राजपूतों का सहयोग एवं उनकी सहायता
आवश्यक थी। अकबर जानता था कि दिल्ली की
सुरक्षा के लिए इसके पास-पड़ोस के राज्यों के साथ
अच्छे सम्बन्ध का रहना आवश्यक है।
राजपूतों के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाने के
तरीके :
. वैवाहिक सम्बन्ध : अम्बेर के राजा बिहारीमल अथवा भारमल ने अपनी
पुत्री का विवाह अकबर के साथ किया। अकबर ने भी उसे सम्राज्ञी घोषित किया। उसने जैसलमेर, जोधपुर राजकुमारियों के साथ विवाह किया।
2. राजपूतों को ऊँचे पद देना : अनेक राजपूतों को उसने ऊँचे पदों पर
बिढाया। मानसिंह अकबर
के बड़े सेनापतियों में एक था। टोडरमल
उसके दरबार में राजस्व मंत्री थे। है
3. धार्मिक उदारता की नीति को अपनाना : राजपूतों के साथ मैत्री सम्बन्ध
की स्थापना होने के
बाद उसने 'जजिया-कर' भी उठा लिया और सभी
को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान कर दी।
अकबर की राजपूत-नीति की अधिकांश
इतिहासकारों ने सराहना की है। उस समय भारत में इस
प्रकार की नीति का अवलम्बन करना परम
आवश्यक था। यदि अकबर इस नीति का अवलम्बन नहीं
करता तो संभव था कि उसका राज्य दृढ़ता
से संस्थापित न हो पाता।
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