अथवा, मुगल काल में फारसी से उदूं का विकास किस प्रकार हुआ।

 प्रश्न: फारसी ने किस प्रकार तुर्की के स्थान पर मुगलों की मुख्य भाषा या दरबारी भाषा का स्थान ग्रहण किया?

अथवा, मुगल काल में फारसी से उदूं का विकास किस प्रकार हुआ।

उत्तर :

i.मुगल दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गये थे। दिल्ली सुल्तानों के काल में उत्तर भारतीय भाषाओं विशेषकर हिंदवी तथा इसकी क्षेत्रीय भाषाओं के साथ फारसी, दरबार और साहित्यिक रचनाओं की भाषा के रूप में, खूब पुष्पित एवं पल्‍लवित हुई। चूँकि मुगल चगताई तुर्क थे, अतः तुर्की उनकी मातृभाषा थी। मुगलवंश के प्रथम शासक बाबर ने अपनी कविताएँ एवं अपने संस्मरण तुर्की भाषा में ही लिखे।

ii.अकबर ने सोच-समझकर ही फारसी को दरबार की मुख्य भाषा बनाया। सम्भवतः ईरान के

साथ सांस्कृतिक एवं बौद्धिक सम्पककों के साथ-साथ मुगल दरबार में पद पाने को इच्छुक ईरानी और

मध्य एशियाई प्रवासियों ने बादशाह को इस भाषा को अपनाने के लिए प्रेरित किया होगा।

(i) फारसी को दरबार की भाषा का ऊँचा स्थान दिया गया तथा उन लोगों को शक्ति एवं प्रतिष्ठा

प्रदान की गयी जिनकी इस भाषा पर अच्छी पकड़ थी। राजा, शाही परिवार के लोग और दरबार के विशिष्ट

व्यक्ति यह भाषा बोलते थे। आगे चलकर यह सभी स्तरों के प्रशासन की भाषा बन गयी। जिससे-लेखाकारों, लिपिकों तथा अन्य अधिकारियों ने भी इसे सीख लिया।

(iv) जहाँ-जहाँ फारसी प्रत्यक्ष प्रयोग में नहीं थी, वहाँ भी राजस्थानी, मराठी और यहाँ तक की

तमिल में शासकीय लेखों की भाषा को इसकी शब्दावली और मुहावरों ने व्यापक रूप से प्रभावित किया।

चूँकि 16वीं और 17वीं सदी के दौरान फारसी का प्रयोग करने वाले लोग उपमहाद्वीप के विभिन्‍न क्षेत्रों से.

आये थे और वे अन्य भारंतीय भाषाएँ भी बोलते थे, अतः स्थानीय मुहावरों एवं कहावतों को समाविष्ट

करने से फारसी का भी भारतीयीकरण हो गया।

(v) फारसी और हिंदवी के सम्पर्क से एक नयी भाषा उर्दू का जन्म हुआ।

(vi) अकबरनामा जैसे मुगल इतिहास फारसी में लिखे गये जबकि अन्य जैसे बाबर के संस्मरणों का

बाबरनामा के नाम से तुर्की से फारसी में अनुवाद किया गया।

(vii) मुगल बादशाहों ने महाभारत और रामायण जैसे संस्कृत ग्रन्थों को फारसी में अनुवाद

करवाया। महाभारत का अनुवादरज्मनामा' (युद्धों की पुस्तक) के रूप में हुआ।

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