मुगल सम्राट के दरबार की प्रक्रिया में किस तरह से उसके स्तर और शक्ति को प्रतिबिम्बित करते हैं

 

प्रश्न : मुगल सम्राट के दरबार की प्रक्रिया में किस तरह से उसके स्तर और शक्ति को

प्रतिबिम्बित करते हैं? स्पष्ट करें।

मुगल सप्राटों के राजसभा की रीतियाँ किस प्रकार उनके गौरव और शक्ति को प्रतिबिंबित

करती हैं?

उतर - मुगल दरबार भव्यता का प्रतीक था | शौकत में मुगल दरबार का मुकाबला एशिया के किसी भि बादशाह का दरबार नहीं कर सकता था।

(1) बादशाह का स्थान सर्वोच्च था। एक बार जब बादशाह अपने सिंहासन पर बैठ जाता था तो

किसी को भी अपनी जगह से कहीं और जाने की अनुमति नहीं थी औ न ही कोई अनुमति के बिना दरबार से बाहर जा सकता था।

2) मुगल सम्राट के दरबार में किसी पदाधिकारी की हैसियत इस बात से निर्धारित होती थी कि बह

सम्राट से कितना पास या दूर बैठता था। किसी दरबारी को दिया गया स्थान उसकी महत्ता का प्रतीक था।

(3) दरबार में मान्य संबोधन, शिष्टाचार तथा बोलने के नियम पूर्व निर्धारित थे। दरबारी शिष्टाचार

का कठोरता से पालन किया जाता था और उसका जरा सा भी उल्लघंन होने पर सम्बन्धित व्यक्ति को

दंडित किया जाता था।

(4) मुगल दरबार में राजनयिक दूतों के सम्बन्ध में भी इन्हीं परम्पराओं का पालन किया जाता था।

- मुगल बादशाह के समक्ष उपस्थित होने वाले विदेशी राजदूत से यह आशा की जाती थी कि वह अभिवादन के मान्य रूपों में एक -- या तो बहुत झुककर अथवा जमीन को चूमकर अथवा फारसी परंपरा के अनुसार छाती के सामने हाथ बाँधकर अभिवादन करेगा।

इस प्रकार मुगल सम्राट के दरबार की ये सभी ग्रक्रियाएँ एवं अभिवादन के मुगल सत्ता की उच्चता एवं श्रेष्ठता के प्रतीक थे।

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