बौद्ध धर्म की शिक्षाओं

 

प्रश्न: भगवान बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन करें।

अधवा, बोद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धन्तों का उल्लेख करें।

अथवा, बुद्ध के अनुसार आर्य सत्य कितने हैं? आष्टांगिक मार्ग क्या हैं?

अथवा, बौद्ध धर्म की शिक्षाओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।

अथवा, बुद्ध की प्रथम संसार-यात्रा से उनका जीवन कैसे बदल गया?

अथवा, किन चार दृश्यों को देखकर बुद्ध में बैराग्य उत्पन्न हुआ?

उत्तर : जीवन : भगवान बुद्ध (सिद्धार्थ, गौतम) का जन्म कपिलवस्तु गणराज्य के राजकुल में हुआ था।

मानव जीवन से संबद्ध चार दृश्यों का राजकुमार गौतम के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा! ये दृश्य थे i. एक वृद्ध,  ii.एक रोगी,  iii.एक मृतक iv.एक संन्यासी को देखना

1.एक  वृद्ध, रोगी और मृतक को देखकर उन्हें यह अनुभूति हुई कि मनुष्य के शरीर का क्षय और अंत निश्चित है। यह देख उसे बहुत दुःख पंहुचा |  

2.एक संन्यासी को देखना को देखकर सिद्धार्थ में वेराग्य की भावना उत्पन्न हुई

उसे मानो बुढ़ापे, बीमारी और मृत्यु से कोई परेशानी न थी और उसने शांति को प्राप्त कर लिया था। यह देख उसे दुःख को दूर करने का हल मिल गया |

3.सिद्धार्थ ने भी निश्चय किया कि वे भी संन्यास मार्ग को अपनायेंगे। इसके कुछ ही समय के पश्चात्‌ वे गृहत्याग कर सत्य की खोज में निकल पड़े। उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई तथा उन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की।

बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त/उपदेश/शिक्षाएँ

महात्मा बुद्ध ने चार आर्य सत्यों का प्रतिपादन किया। उनके द्वारा प्रतिपादित आर्य सत्यों (या उपदेशों) को 'चत्वारि आर्य सत्यानि' कहते हैं।

ये चार आर्य सत्य निम्नलिखित हैं-

(1) दुःख है              (2) दुःख का समुदाय है

(3) दुःख का निरोध है         (4) अष्टांग मार्गों के अवलम्बन से दुःख के कारण को समाप्त किया जा सकता है।

(1) दुःख: महात्मा बुद्ध के अनुसार दुःख सभी को होता है। दुःख का कारण जन्म है।

(2) दुःख समुदाय: बुद्ध ने दुःख का समुदाय या कारणइच्छा' को बताया है। इच्छा लालसा के साथ मिलकर मनुष्य को पुनः पुन: जन्म-मरण के चक्र में डाल देती है। मनुष्य वासना तथा अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए छटपटाने लगता है। दुःख का समुदाय (कारण) यही है।

(3) दुःख निरोध: इच्छा के त्याग से मनुष्य इनसे मुक्ति पा सकता है। जब दु:खों का अंत हो जाता है तो परमानंद की प्राप्ति होती है।

(4) अष्टांग मार्ग: महात्मा बुद्ध ने तृष्णाओं के दमन के लिए अष्ट-मार्गों के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इन अष्ट सिद्धांतों को अष्टांगिक मांर्ग भी कहते हैं।

ये निम्नलिखित हैं-

(क) सम्यक्‌ दृष्टि (ख) सम्यक्‌ संकल्प (ग) सम्यक्‌ वाक्‌ (घ) सम्यक्‌ कर्मान्त

(ड) सम्यक्‌ आजीविका (च) सम्यक्‌ व्यायाम (छ) सम्यक्‌ ध्यान और (ज) सम्यक्‌ समाधि।

1.    महात्मा बुद्ध की शिक्षाएँ केवल नैतिकता प्रधान ही नहीं थी अपितु उनकी शिक्षाओं और उनके द्वारा प्रवरत्तित धर्म को दार्शनिक आधार भी प्राप्त था।

2.    वे यथार्थवादी थे। वे अनीश्वरवादी थे। बे पुनर्जन्म में विश्वास करते थे।

3.    उनके धर्म में अहिंसा जीवदया, करुणा, अस्तेय और बड़ों के प्रति आदर के भाव को भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उनका धर्म व्यावहारिक था जिसमें स्वास्थ्य और अनुशासन को भी महत्त्व प्रदान किया गया था।

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