पांडुलिपि
प्रश्न : मुगल दरबार में पांडुलिपि तैयार
करने की प्रक्रिया का बर्णन करें।
उत्तर : पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया :
(1) मुगल भारत की सभी
पुस्तकें पांडुलिपियों के रूप में थीं अर्थात् बे हाथ से लिखी होती थीं।
पांडुलिपि रचना का मुख्य केन्द्र शाही किताबखाना
था। हालाँकि किताबखाना शब्द पुस्तकालय का
अनुवाद कहा जा सकता है।
वस्तुतःयह किताबखाना एक लिपि घर था, जहाँ सम्राट की
पांडुलिपियों का संग्रह किया जाता था
और नयी पांडुलिपियों की रचना की जाती
थी। ।
(2) पांडुलिपियों की रचना में विविध प्रकार के कार्य करने वाले बहुत लोग
शामिल होते थे।
कागज बनाने वाले पांडुलिपि के पन्ने
तैयार करते थे।
सुलेखक मूल पाठ की नकल तैयार करते थे।
कोफ्तगार पुस्तक के पृष्ठों को चमक़ाते
थे।'
चित्रकार पाठ से सम्बन्धित दृश्यों का
चित्रांकन करते थे।
जिल्दसाज पन्नों को एकत्र कर उसे अलंकृत
करते थे।
(3) तैयार पांडुलिपियों को एक बहुमूल्य वस्तु, बौद्धिक संपदा और
सौंदर्य के रूप में देखा जाता था।
प्रश्न : मुगल पांडुलिपियों में चित्रित
आक्ृतियों के महत्त्व का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा, “मुगल द्वारा छोड़े गये
चित्रकारी खजाने उनकी-मानसिकता समझने में हैं। '' स्पष्ट करें ?
अथवा, चित्रकला एवं
चित्रकारों के सम्बन्ध में मुगल सम्राटों के क्या विचार थे?
उत्तर :
(1) मुगल पांडुलिपियों की रचना में चित्रकारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका
होती थी। सम्राट के शासन की घटनाओं का विवरण देने
वाले इतिहासों में लिखित पाठ के साथ-साथ घटनाओं को चित्रों के
माध्यम से दृश्य रूप में भी वर्णित किया जाता था।
(2) चित्रों को न केवल पुस्तक के सौंदर्य को बढ़ाने वाला वरन् बादशाह की
शक्ति, प्रभाव
विचारों के संप्रेषण का भी एक सशक्त
माध्यम माना जाता था।
(3) इतिहासकार अबुल फज्ल ने चित्रकारी को एक जादुई-कला के रूप में
वर्णित किया उसकी राय में इस कला से किसी निर्जीब वस्तु को भी इस रूप में
प्रस्तुत किया जा सकता है कि
सजीव लगे।
(4) उलेमाओं एवं रूढ़िवादी मुसलमानों ने चित्रकारी को इस्लाम के विरुद्ध
माना तथापि कई मुगल
बादशाहों एवं मध्य एशिया के मुसलमान
शासकों ने चित्रकला एवं चित्रकारों को संरक्षण प्रदान किया
(5) चित्रकला के सम्बन्ध में अबुल फज्ल अकबर को यह कहते हुए उद्धृत
करता है- कई लोग
ऐसे हैं जो चित्रकला से घृणा करते हैं
पर मैं ऐसे व्यक्तियों को नापसंद करता हु! मुझे ऐसा लगता है कि
कलाकार के पास खुदा को पहचानने का
बेजोड़ तरीका है। चूँकि कहीं न कहीं उसे यह महसूस होता है
कि खुदा की रचना को वह जीवन नहीं दे सकता
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