सूफी

 

प्रश्न : सूफी कौन थे?

उत्तर : इस्लाम की प्रारम्भिक शताब्दियों में एक धार्मिक एवं राजनीतिक संस्था के रूप में खिलाफत कि बढती विषय शक्ति के विरुद्ध कुछ आध्यात्मिक लोगों का रहस्यवाद और वैराग्य की ओर झुकाव इन्हें सूफी कहा जाने लगा।

 

प्रश्न सूफियों ने उत्तर भारत में अपने विचारों के अपनाये जाने तथा उनके विस्तार के लिए एक  तैयार वातावरण पाया। '' व्याख्या करें।

अथवा, भारत में सूफीयों के उदय के क्या कारण थे?

उतर- 10वीं शताब्दी के पूर्व से ही दक्षिण भारत में ब्राह्मणीय सामाजिक व्यवस्था को विभिन्‍न मतावलम्बियो द्वारा चुनोती मिल रही थी। इसका एक प्रमुख कारण था –

1.  उत्तरी भारत में अनेक राजपूत राज्यों का उद्भव होना।

2.  इन राज्यों के शासकों द्वारा ब्राह्मणों को पूर्ण श्रय दिया गया।

3.  राज्यों के विकास के साथ ही शिल्पी समुदाय का विकास होता गया। इनमें जुलाहों  को प्रमुख स्थान प्राप्त था।

4.  संयोजितः दस्तकारी उत्पादन एवं नगरीय केन्द्रों के विस्तार के कारण इनके वस्तुओं की माँग बढ़ती गयी। इनका व्यापार बड़े पैमाने पर मध्य एवं पशचमी एशिया के साथ होता था।

5.  शिल्प समुदाय में कई धार्मिक नेता हुए जो रुढ़िवादी ब्राह्मणीय ढाँचे से बाहर थे। ऐसे नेताओं में नाथ, जोगी और सिद्ध शामिल थे।

6.    पश्चिमी एशिया के सम्पर्क में आने के कारण सूफी विचारधारा का प्रभाव इन पर भी पड़ा।

7.    इन धार्मिक नेताओं ने आम लोगों की भाषा में अपने विचार प्रस्तुत किये। इसका व्यापक प्रभाव आम जनता पर पड़ रहा था। इसके कारण वेदों की सत्ता के प्रभाव में कमी आयी।

8.    इसी समय दिल्ली सल्तनत का प्रादुर्भाव हुआ। इसके कारण राजपूत राजाओं के वर्चस्व में कमी आयी तथा इस्लाम का प्रवेश इस क्षेत्र में हुआ।

9.    उसी समय सूफी मतावलम्बियों का प्रभाव भारत के पश्चिमी इलाकों में पड़ रहा था। सूफियों की गैर कट्टर इस्लामी छवि, उनके सिलसिलों, गीत संगीत तथा आम जनता की भाषा में विचारों के प्रसार ने लोगों को खास कर प्रभावित किया।

10.      सूफी भी इस क्षेत्र में आकर यहाँ की भक्ति परम्परा के साथ घुल-मिल गये।

11.           इन कारणों से उत्तरी भारत में इनका प्रभाव बढ़ता चला गया।

12.           इस प्रकार हम कह सकते हैं-सूफियों ने उत्तर भारत में अपने विचारों को अपनाये जाने तथा उनके विस्तार के लिए एक तैयार वातावरण पाया।

सूफी मत के बारे में क्या जानते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।

अथवा, सूफी मत के कुछ धार्मिक विश्वासों और आचारों की व्याख्या करें।

उत्तर:

1.    10वीं शताब्दी में बुद्धिवादी दर्शन का प्रभाव समाप्त होने लगा एवं कुरानं और हदीस पर आधारित रूढ़िवादी विचारधाराओं तथा सूफी रहस्यवाद पंथ का जन्म हुआ।

2.    सूफी एकेश्वरवाद में विश्वास करते हैं। उनके अनुसार परमात्मा एक हैं जिसे वे अल्लाह कहते है |

3.    सूफी मत पीर अथवा गुरु को सर्वाधिक महत्त्व देता है। पीर अपने मुरीदों (शिष्यों) को अल्लाह तक पहुँचाने का रास्ता बताता है। पीर की उपासना ही अल्लाह की उपासना हे।

4.    सूफीबाद इबादत (उपासना) पर अत्यधिक बल देता है। अल्लाह की सच्चे दिल से नमाज पढ़कर, रोजा रखकर, दान देकर तथा हज करके की जा सकती है। का

5.    सूफी भोग बिलास से दूर सरल, सादा एवं संयमपूर्ण जीवन मे ही विश्वास करते है |

6.    सूफी झोषड़ियों में रहते थे और सुल्तान से भेंट या उपहार नहीं लेते थे।

7.  सूफियों का कहना था कि ईश्वर की प्राप्ति प्रेम और संगीत से की जा सकती है।  संगीत अल्लाह तक पहुचाने का साधन है

8.    सूफियों की धार्मिक संगीत सभाओं को समां कहा जाता है ;

 

9.    सूफी मानव मात्र की सेवा करना अपना परम धर्म समझते हैं। सूफीबाद 12 पंथों अथवा सिलसिलों में संगठित था। सामान्यतः प्रत्येक सिलसिले का नेत्तृत्व एक प्रसिद्ध सूफी संत करता था जिसे पीर कहते थे। वह अपने शिष्यों (मुरीदों) के साथ खानकाह (आश्रम) में निवास करता था। पीर तथा मुरीद का.पारस्परिक संबंध सूफी धर्म व्यवस्था का अत्यधिक महत्त्वपूर्ण अंग था। प्रत्येक पीर अपने जीवन काल में अपने उत्तराधिकारी को चुनाव करता था जिसे बली कहा जाता था। वली अपने पीर द्वारा प्रारम्भ किये गये कार्यों को आगे बढ़ाता था।

10.           पीर की मृत्यु के पश्चात्‌ उसकी दरगाह उसके मुरीदों के लिए भक्ति का स्थल बन जाती थी। इस प्रकार पीर की दरगाह पर जियारत के लिए जाने की, विशेषकर उनकी बरसी के अवसर पर, प्रारम्भ हुई। इस परिपाटी को, उर्स कहा का) लगा। लोग दरगाह आध्यात्मिक एवं ऐहिक कामनाओं की पूर्त्ति के लिए उनका आशीर्वाद लेने जाते जा

 

सूफीबाद में सिलसिला का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

उतर - सिलसिला का शाब्दिक अर्थ है - जंजीर जो शेख और उसके मुरीद (अनुयायी) के बीच एक निरिंतर रिश्ते का  घोतक है जिसकी पहली अटूंट कड़ी पैग॑म्बर मोहम्मद से जुड़ी है। इस कड़ी के अध्यात्मिक शक्ति और आशीर्वाद मुरीदों तक पहुँचता है।

सूफ़ियों के चिश्ती सिलसिला से सम्बन्धित दो परम्पराओं का उल्लेख करें।

अथवा चिशती उपासना क्‍या है?

उतर -  

1.    खानकाह एवं लंगर : चिश्ती सिलसिला का खानकाह (आश्रम) सामाजिक जीवन बिंदु था। यहाँ सहवासी और अतिथि रहते और उपासना करते थे। यहाँ एक लंगर भी चलती थी |

2.    आध्यात्मिक संगीत एवं नृत्य ( जियारत तथा कव्वाली ) : चूँकि नाच और संगीत जियारत का हिस्सा थे इसलिए चिश्ती उपासना पद्धति में समाँ (आध्यात्मिक संगीत की महफिल) का था जो इस तथ्य की पुष्टि करता है कि चिश्ती स्थानीय भक्ति परंपरा से जुड़े हुए थे।

प्रश्न: सूफी किन्हें कहा गया? भारत के सूफी सिलसिलों के नाम लिखें।

अथवा, सूफी मत से क्या तात्पर्य है? सूफी मत के सिलसिलों का बिस्तारपूर्वक वर्णन करें?

उतर-

1.    सूफीशब्द की उत्पति अरबी शब्दसफासे हुई है जिसका अर्थ है शुद्धता. और.

2.    पवित्रता। सूफीवाद कुरान की उदार व्याख्या, जिसेतरीकतकहा जाता है के साथ जुड़ा हुआ है।

3.  - सूफीवाद का मानना है किहक” (ईश्वर) औरखलक” (आत्मा) एक ही है. सूफीवांद के सिद्धांतईश्वर की प्राप्तिपर आधारित है |

4.    जिसे हिन्दू या मुसलमान में भेद किए बिना ईश्वर से प्रेम, उसकी प्रार्थना, उपवास और अनुष्ठानों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है | साथ ही सूफीवाद में इस बात पर बल दिया गया है कि ईश्वर और उसके भक्तों के बीच कोई मध्यस्थ नहीं होना चाहिए।

5.    सूफी सिलसिले : सूफी मत कई सिलसिलों में विभक्त था। सूफियों के सिलसिले दो भागों में _

6.    विभाजित थे, “बा-शराजो इस्लामी सिद्धांतों के समर्थक थे और येबे-शराजो इस्लामी सिद्धांतों से

7.  बंधे नहीं थे।

8.    कुछ सूफी सिलसिले, उसके संस्थापक और उनके आदर्शों की सूची निम्न है;

9.  चिशती (ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती) : इस सिलसिले के सी शासक बर्ग से अलग रहते थे। सिलसिले के संत महबूब-ए-इलाही ने संगीत गायन की विधाशर्माको लोकप्रिय बनाया।

10.           सुहरावर्दी (शेख शहाबुद्दीन सुहरावर्दी) : इन लोगों का शासक वर्ग से घनिष्ठ संबंध था।

11.           कादिरी (शेख निजमतउल्लाह) : ये लोग इस्लाम की बुनियादी बातों को दृढ़ता से पालन करते थे।

12.           नक्शबन्दी (ख्वाजा पीर मोहम्मद) : रूढ़िवादी सिलसिला। मुजद्दिद ने शिया के दर्शर्न वहादत-उल-शहदूद का विरोध किया था। उन्होंनेलाल-ए-खाफिद नामक पुस्तक लिखी थी। उन्हें जहाँगीर ने गिरफ्तार किया था।

13.           फिरदौसी (शेख सरफुद्दीन याह्या) : सुहरावादी सिलसिला की शाखा। ।

14.           महदवी (मुल्ला मोहम्मद महदी) : इन्होंने रूढिवादी मुसलमानों का विरोध किया।.

15.           कलन्दरिया (अबू वली कलन्दर) : इसके घुम्मकड़ भिक्षुओं कोदरवेशकहा जाता है।

सतारी (अब्दुल्लाह सत्तारी) : खुदा के साथ सीधे संपर्क का दावा किया।

अथवा, क्‍यों और किस तरह शासकों ने नयनार और सूफी संतों से अपने सम्बन्ध बनाने...

का प्रयास किया?

उत्तर : नयनार संतों का दक्षिण के राज्यों से सम्बन्ध ।

(1) शक्तिशाली कोल सम्राटों ने ब्राह्मणीय और भक्ति परम्परा को समर्थन दिया तथा विष्णु ओर शिव

के मंदिरों के निर्माण के लिए भूमि अनुदान दिये। हे

(2) चिदम्बरम्‌, तंजावुर और गंगैकोंडचोलपुरम के विशाल शिव मंदिर चोल सम्राटों की सहायता से...

ही बने। ह

(3) नयनार और आलवार संत बेल्लाल कृषकों द्वारा सम्मानित होते थे। इसलिए आश्चर्य नहीं कि.

शासकों ने भी उनका समर्थन पाने का प्रयास किया।

(4) चोल सम्राटों ने दैवी समर्थन पाने का दावा किया और अपनी-सत्ता के प्रदर्शन के लिए सुन्दर

मंदिरों का निर्माण कराया जिनमें पत्थर और धातु की बनी मूर्त्तियाँ सुसज्जित थीं।

(5) 945 ई. के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि चोल सम्राट परांतक प्रथम ने संत कवि आपारसंबंदर और सुंदबार की धातु की प्रतिमाएँ एक शिव मंदिर में स्थापित करवायी।

 

प्रश्न: सूफियों की देनों का मूल्यांकन करें।

अथवा, भारतीय समाज पर सूफी मत के प्रभाव का आकलन कीजिए।

 

उत्तर :

1.  अधिकांश सूफी संत उदार थे। उस समय के सुल्तानों का धार्मिक दृष्टिकोण अंत्यन्त संकुचित था। किन्तु सूफी संतों के सानिध्य में आ कर सुल्तानों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया।

2.  सूफी साधकों की उदारता से सुल्तान भी प्रभावित हुए और उन्होंने भी उदार धार्मिक नीति का अनुकरण किया। इसका प्रभाव सबसे अधिक अकबर के काल में दृष्टिगोचर होता है। प्रो. रशीद के शब्दों में-राष्ट्रीय संगठन की भावना को जागृत करने में सूफीवाद की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान है।

3.  अनेक हिन्दू भी सूफी संतों के शिष्य थे। उनके आश्रमों में ये बराबर जाया करते थे। अतः समाज में भी दोनों सम्प्रदायों के बीच सौहार्द्र बढ़ा। सूफी संतों के निधन पर श्रद्धालुओं ने समाधियाँ बनवायीं जो कालान्तर में तीर्थ की तरह हो गयीं।

4.  मध्यकालीन संतों ने उपेक्षितों को गले से लगाया। उन्होंने अनाथों, निर्धनों एवं विधवाओं की सेवा करने की उपदेश दिया। संतों को राज्य से जो बड़ी-बड़ी राशियाँ दानस्वरूप मिलती थीं उसे गरीबों में बाँट देते थे। इससे लोगों में दान देने की प्रवृत्ति बढ़ी। जनसाधारण समाजसेवा में भाग लेने लगा। सूफी संतों के प्रभावों में आकर सुल्तानों ने विभिन्‍न स्थानों पर. अनाथाश्रम, दानगृह एवं अस्पताल आदि बनवाये। भूखों को मुफ्त भोजन की व्यवस्था की गयी।

5.  छुआछूत, धार्मिक संकीर्णता आदि को दूर करने का प्रयास हुआ। _में आशा का संचार हुआ। दलित भी संत बने। लोगों में नैतिक एवं मानवीय गुणों का विकास हुआ। सामाजिक बुराइयों को दूर किया गया और भारतीय समाज को सुधारने की चेष्टा की गयी।

6.  सूफीमत के प्रचार के साथ-साथ अनेक तीर्थस्थानों तथा दरगाहों का निर्माण हुआ। समाधियों पर बनाये गये भवन वास्तुकला की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं जो उस समय के विकसित वास्तुकला के परिचायक है।

7.  सूफी संतों में संगीत अत्यन्त लोकप्रिय था। इससे संगीत के विकास में अपार सहायता मिली। संगीत एवं गीत जनजीवन में लोकप्रिय हुए।

8.  सूफी संतों ने साहित्यिक कृतियाँ रचीं और साहित्य को समृद्ध बनाया। अमीर खुसरो ने अनेक काब्यों को रचना की। सभी काव्य-शैलियों को ले कर एक नयी काव्य-शैली का निर्माण हुआ जिसे सबक-ए-हिन्दी अथवा भारतीय शैली कहा गया। मलिक मुहम्मद जायसी जैसे सूफी संतों नें हिन्दी में काव्य रचना की। 

प्रश्न: सूफियों की देनों का मूल्यांकन करें।

अथवा, भारतीय समाज पर सूफी मत के प्रभाव का आकलन कीजिए।

 

उत्तर :

1.  अधिकांश सूफी संत उदार थे। उस समय के सुल्तानों का धार्मिक दृष्टिकोण अंत्यन्त संकुचित था। किन्तु सूफी संतों के सानिध्य में आ कर सुल्तानों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया।

2.  सूफी साधकों की उदारता से सुल्तान भी प्रभावित हुए और उन्होंने भी उदार धार्मिक नीति का अनुकरण किया। इसका प्रभाव सबसे अधिक अकबर के काल में दृष्टिगोचर होता है। प्रो. रशीद के शब्दों में-राष्ट्रीय संगठन की भावना को जागृत करने में सूफीवाद की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान है।

3.  अनेक हिन्दू भी सूफी संतों के शिष्य थे। उनके आश्रमों में ये बराबर जाया करते थे। अतः समाज में भी दोनों सम्प्रदायों के बीच सौहार्द्र बढ़ा। सूफी संतों के निधन पर श्रद्धालुओं ने समाधियाँ बनवायीं जो कालान्तर में तीर्थ की तरह हो गयीं।

4.  मध्यकालीन संतों ने उपेक्षितों को गले से लगाया। उन्होंने अनाथों, निर्धनों एवं विधवाओं की सेवा करने की उपदेश दिया। संतों को राज्य से जो बड़ी-बड़ी राशियाँ दानस्वरूप मिलती थीं उसे गरीबों में बाँट देते थे। इससे लोगों में दान देने की प्रवृत्ति बढ़ी। जनसाधारण समाजसेवा में भाग लेने लगा। सूफी संतों के प्रभावों में आकर सुल्तानों ने विभिन्‍न स्थानों पर. अनाथाश्रम, दानगृह एवं अस्पताल आदि बनवाये। भूखों को मुफ्त भोजन की व्यवस्था की गयी।

5.  छुआछूत, धार्मिक संकीर्णता आदि को दूर करने का प्रयास हुआ। _में आशा का संचार हुआ। दलित भी संत बने। लोगों में नैतिक एवं मानवीय गुणों का विकास हुआ। सामाजिक बुराइयों को दूर किया गया और भारतीय समाज को सुधारने की चेष्टा की गयी।

6.  सूफीमत के प्रचार के साथ-साथ अनेक तीर्थस्थानों तथा दरगाहों का निर्माण हुआ। समाधियों पर बनाये गये भवन वास्तुकला की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं जो उस समय के विकसित वास्तुकला के परिचायक है।

7.  सूफी संतों में संगीत अत्यन्त लोकप्रिय था। इससे संगीत के विकास में अपार सहायता मिली। संगीत एवं गीत जनजीवन में लोकप्रिय हुए।

सूफी संतों ने साहित्यिक कृतियाँ रचीं और साहित्य को समृद्ध बनाया। अमीर खुसरो ने अनेक काब्यों को रचना की। सभी काव्य-शैलियों को ले कर एक नयी काव्य-शैली का निर्माण हुआ जिसे सबक-ए-हिन्दी अथवा भारतीय शैली कहा गया। मलिक मुहम्मद जायसी जैसे सूफी संतों नें हिन्दी में काव्य रचना की।



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