विद्रोह को कुचलने , परिणाम , विफलता
प्रश्न : अंग्रेजों के विद्रोह को कुचलने के लिए क्या कदम उठाये?
उत्तर : (i) विद्रोही सेनाओं के विरुद्ध फौजी कार्रवाई करने के पूर्व अंग्रेजों ने कई कानूनों को पारित किया और इनके अनुसार सम्पूर्ण उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू कर दिया, केवल शक के आघार पर किसी हिन्दुस्तानी को कैद किया जा सकता था और उनपर मुकदमा चलाकर सजा दी जा
सकती थी।
(ii) दिल्ली पर उन्होंने दो ओर से आक्रामण कर भयानक संघर्ष के पश्चात् अधिकार किया।
(iii) गंगा के मैदानी क्षेत्र में जो विद्रोह से प्रभावित थे, अंग्रेजों ने कड़ी सैनिक कार्रवाई की।
(iv) अंग्रेजों ने अपनी सैनिक शक्ति का भयानक पैमाने पर इस्तेमाल किया। उन्होंने विद्रोही जमींदारों को जमीन से बेदखल कर दिया और अपने वफादारों को इनाम दिया।
(v) प्रतिशोध और सबक सिखाने की चाह के कारण अंग्रेजों ने विद्रोहियों को अत्यन्त निर्ममता से “मौत के घाट उतारा। उन्हें तोपों के मुँह से बाँघधकर उड़ा दिया गया फाँसी पर लटका दिया गया।
प्रश्न : 1857 ई. के विद्रोह के क्या परिणाम हुए? इसने राष्ट्रवाद का विकास कैसे किया?
1857 ई. के के विद्रोह, भारत क्रा प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। कैसे?
उत्तर : विद्रोह का परिणाम.: 1857 ई. का यह आंदोलन और अँगरेजों के विरुद्ध उठा हथियार ब्रिटिश राज की अन्यायपूर्ण हुकूमत, उनकी छल योजना, बेईमानी और अराजक राज्य व्यवस्था का परिणाम था। अत: इस अराजकता को समाप्त करने के लिए ब्रितानिया की सरकार ने विद्रोह के शांत होने के तुरंत बाद भारत की हुकूमत ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथों से छीन कर सीधे अपने शासनाधीन ले लिया।
ब्रितानी सरकार ने भारत में नियंत्रण की प्रभावकारी प्रविधियों को और भी सुदृढ़ बनाया। भारत में जो प्रतिक्रियावांदी और निहित स्वार्थी तत्त्व थे, ब्रिटिश सरकार ने भारत में उन्हें पूरा संरक्षण प्रदान किया।
उन्हें प्रोत्साहन देने की नीति अपनायी। इसी विद्रोह के बाद अँगरेजों ने भारत में मुसलमानों को हिन्दुओं से अलग करना शुरू कर दिया और “फूट डालो और राज करो' को अपनी शासन-नौीति का मूल मंत्र बना
लिया।
सैनिक एवं असैनिक प्रशासन-द्षेत्र से भारतीयों को अलग रखकर उस पर अँगरेजों को बैठा दिया गया। उनके वर्चस्व और नियंत्रण को और भी कठोर बना दिया गया।
1857 ई. के विद्रोह, एक प्रकार से भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। इस विद्रोह ने इसने राष्ट्रवाद के विकास की नींव रख दी। इसने भारत के हर वर्ग में अँगरेजों के प्रति विरोध की भावना भर दी। यद्यपि अगरेज अपनी ओर से इस विद्रोह का दमन और शमन कर चुके थे तथापि यत्र-तत्र उनके विरुद्ध व्रिद्वोह और आन्दोलन निरंतर होता ही रहा। 857 ई. से प्रारम्भ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम चरण कौ पूर्णाहुति 1947 ई. के 15 अगस्त को भारत की स्वतंत्रता की प्राप्ति के साथ हो गयी।
कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि यह विद्रोह पूर्वी एवं पाश्चात्य संस्कृति के बीच संघर्ष था। किन्तु अधिकांश इतिहासकारों का मत है कि यह विद्रोह भारत से ब्रिटिश राज को उखाड़ फेंकने के लिए हिन्दुओं ओर मुसलमानों के द्वारा सम्मिलित रूप से किया गया प्रयास था। इस आंदोलन ने भारत में ब्रितानी शासन की चूलें हिलाकर रख दी। वी.डी. सावरकर जैसे क्रांतिकारी बीर और राष्ट्रवादी विचारधारा के पोषक इतिहासकारों ने इसे अँगरेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सुनियोजित राष्ट्रीय आंदोलन कहा है। "
प्रश्न : 1857 ई. के विद्रोह में विद्वोहियों की विफलता के कारणों की विवेचना कीजिए?
अथवा, 1857 ई. के विद्रोह की असफलता के प्रमुख कारण क्या थे?
उतर: (i) किसी समान उद्देश्य को सामने रखकर सुनियोजित ढंग से विद्रोह का संचालन न हो पाना,
ii) उचित, सशक्त नेतृत्व और मार्गदर्शन का एवं संसाधनों का अभाव, अत्याधुनिक शस्त्रों और अस्त्रो का अभाव, ...
iii) ऊपर-ऊपर की हिन्दू-मुस्लिम एकता और भीतर से उनका बँटा होना,
iv) आंदोलन में अखिल भारतीय व्यापकता और जनसमर्थन का धान
v) दक्षिण भारत, राजस्थान आदि क्षेत्रों का इससे पूर्णतः अछूता रह जाना,
vi) अधिकांश राजाओं, जमींदारों और तालुकेदारों द्वारा विद्रोह के दमन में अँगरेजों का साथ देना
vii) सिक््खों और गोरखा सैनिकों की मदद से आंदोलन को कुचल देने के अँगरेजों को कूटनीतिक सफलता।
इस प्रकार, अँगरेजों की फूट डालो और राज करो की कूटनीति कौ सफलता आदि के कारण भारत का यह मुक्ति आंदोलन असफल हो गया।
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