1947 ई. में ब्रिटिश शासक
प्रश्न: 1947 ई. में ब्रिटिश शासक
क्यों भारत को आजाद करने के लिए विवश हुए?
अथवा, उन कारणों अथवा
परिस्थितियों की विवेचना कीजिये, जिनके परिणामस्वरूप भारत को सन्॒
1947 ई. में स्वतन्त्रता मिली।
उत्तर : 15 अगस्त, 1947 ई. में भारत की स्वतन्त्रता की प्राप्ति
भारतीयों के कठोर संघर्ष और
बलिदान का परिणाम है। साथ ही, उस समय कुछ ऐसी
परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गयी थीं कि अँगरेजों
ने यह महसूस किया कि भारत को स्वतन्त्र
कर देने में ही कल्याण है। सन् 1947 ई. में भारतीय
स्वतन्त्रता के उत्तरदायी कारण
निम्नलिखित थे-
1.भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की शक्ति :
भारतीय स्वतन्त्रता के उत्तरदायी कारणों में भारतीय
राष्ट्रीय आन्दोलन की शक्ति का स्थान
सर्वप्रथम आता है। द्वितीयँ विश्वयुद्ध, भारत छोड़ो' आन्दोलन,
आजाद हिन्द फौज के मुकदमे तथा उसके
विरोध में किये गये प्रदर्शन आदि से राष्ट्रीय चेतना इतनी प्रबल
एवं जाग्रत हो गयी थी तथा राष्ट्रीय
आन्दोलन ने इतना शक्तिशाली रूप धारण कर लिया था कि भारतीय
स्वतन्त्रता को अधिक दिनों तक दबा कर
रखना अँगरेजों के लिए कठिन था। फलतः, अँगरेजों ने भारत
को स्वतन्त्र कर देना ही उचित समझा।
2. एशिया के अन्य प्रगतिशील आन्दोलन : द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद
सम्पूर्ण एशिया की तन््द्रा
टूटी और यहाँ के निवासियों ने अनुभव
किया कि पश्चिमी राष्ट्रों द्वारा उनका शोषण किया जा रहा है। सुदूर
पूर्व और मध्य-पूर्व में जोर पकड़नेवाले
प्रगतिशील आन्दोलनों ने प्रत्यक्ष रूप से भारत को भी स्वतन्त्रता
दिलाने में सहायता प्रदान की। “
3, इंगलैण्ड की निर्बलता : द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण ब्रिटेन के
बड़े-बड़े उद्योग-धन्धे नष्ट हो
गये थे तथा उसकी आर्थिक व्यवस्था
छिन्न-भिन्न सी हो गयी थी। वह आर्थिक दृष्टि से भारत का
शासन-भार वहन करने में अपने को असमर्थ
पाने लगा था।
4. भारतीय सेना में विद्रोह : द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारतीय सेना
में सरकार-विरोघी
भावनाओं का प्रसार हुआ। सन् 946 ई. में कलकत्ता, मद्रास, अम्बाला तथा कराँची
में नोसेना
के जवानों ने विद्रोह कर दिया। सेनाओं
के विद्रोह ने स्वाधीनता की तिथि को और भी
नजदीक ला दिया।
5. आजाद हिन्द फौज : सुभाषचन्द्र बोस द्वारा संगठित “आजाद हिन्द फौज' ने भी भारत को
स्वतन्त्रता दिलाने में अप्रत्यक्ष रूप
से बड़ा ही योगदान दिया। इस फौज के अदम्य उत्साह ने भारत में
राष्ट्रीयता की भावना तीब्र कर दी तथा
उस तीक्र राष्ट्रीय भावना की परिस्थिति में भारत को अपने कब्जे में
रखना अँगरेजों के लिए असम्भव-सा प्रतीत
होने लगा।
6. अन्तर्राष्ट्रीय दबाव : राष्ट्रपति रूजवेल्ट और च्यांग काई शेक ने
स्पष्ट रूप से भारत को
आत्म-निर्णब का अधिकार दिलाने के लिए
ब्रिटेन पर दबाव डाला। क्रिप्स ने इस तथ्य को स्वीकार करते
हुए ब्रिटिश संसद में कहा था कि अमेरिका
तथा रूस जैसी शक्तियों के दबाव के कारण भारत पर
आधघिपत्य बनाये रखना असम्भव हो गया है।
7. इंगलैण्ड में मजदूर दल की विजय : सन् 945 ई. के आम चुनावों में इंगलैण्ड में
अनुदार
दल की हार और मजदूर दल की विजय ने भी
भारतीय स्वतन्त्रता को बहुत नजदीक ला दिया। मजदूर
दल भारत कौ स्वतंत्रता के लिए पहले से
ही वचनबद्ध था। अतः, सत्ता प्राप्त करते ही उसने भारत
को स्वतन्त्र करने का कदम उठाया।
8. पाकिस्तान के प्रश्न पर समझौता : माउण्टबैटन-योजना की स्वीकृति
काँग्रेस द्वारा
पाकिस्तान की माँग स्वीकार कर लेने के
बाद अँगरेजों का भारत में रहने का कोई बहाना नहीं रह गया
अँगरेज बदली हुईं परिस्थितियों में भारत
को मैत्रीपूर्ण ढंग से स्वराज्य देकर अपने देश लौट गये।
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की यह
विशिष्टता रही कि रक्तहीन क्रांति द्वारा उसे चालीस करोड़ भारतीयों को भारतीयों
स्वाघीनता दिलाने में सफलता मिली।
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