भारत के संविधान के निर्माण में डॉ. भीमराव. अम्बेदकर की भूमिका
प्रश्न: भारत के संविधान के निर्माण में
डॉ. भीमराव. अम्बेदकर की भूमिका का वर्णन कीजिए।
अथवा, संविधान की प्रारूप
समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ.
अम्बेडकर की भूमिका का वर्णन करें
उत्तर : (i) प्रख्यात विधिवेत्ता और अर्थशाज्री बी. आर. अम्बेडकर प्रारूप समिति
के अध्यक्ष के
रूप में संविधान सभा के सबसे
महत्त्वपूर्ण सदस्यों में से एक थे।
(ii) यद्यपि ब्रिटिश शासन के काल में अम्बेडकर कांग्रेस के राजनीतिक
विरोधी रहे थे परन्तु
विभाजन की हिंसा के पश्चात् डॉ. बी.
आर. अम्बेडकर ने दलितों (हरिजनों) के .लिए पृथक
निर्वाचिका की अपनी माँग छोड़ दी थी।
iii) स्वतंत्रता के समय गाँधीजी की सलाह पर डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को
केन्द्रीय विधि मंत्री
का पद दिया गया। इस भूमिका में उन्होंने
संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में काम
किया। न् हक
iv) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के अथक प्रयास से इस समिति ने अपनी
संस्तुतियाँ 21 फरवरी,
1948 ई. को संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत की। इन प्रस्तावों को
विचार-विमर्श के पश्चात् 26
नवम्बर, 1949 ई. को संविधान सभा ने पारित कर दिया।
v) संविधान सभा का अंतिम अधिवेशन 24 जनवरी, 1950 ई. को हुआ, जिसमें निर्णय लिया गया कि भारत में नवीन संविधान 26 जनवरी, 1950 ई. से लागू किया जाय।
vi) देश में कई दमित समूह सदियों से शोषण एवं सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन
के शिकार थे।
उन्हें मुख्य धारा में लाकर उनके साथ
न्याय तथा उनका विकास अम्बेडकर के लिए एक बड़ी चुनौती थी।
vii) उनके विचारों से एक आम सहमति बनी एवं संविधान सभा ने सुझाव दिया कि
-
a) अस्पृश्यता का उन्मूलन किया जाय और हिन्दू मंदिरों को सभी जातियों
के लिए खोल दिया
जाय।
(b) निचली जातियों को विधायिकाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया
जाय।
viii) संविधान निर्माण के इस दौर में डॉ. अम्बेदकर ने सदियों से
दबे-कचलें दलित समाज के
अधिकारों को संरक्षण देने के लिए अनेक
ठोस ण्वं दूरगामी प्रावधानों को संविधान में सूचीबद्ध किया। .
इस प्रकार भारत के संविधान-निर्माण तथा
समाजिक न्याय एवं समानता के क्षेत्र में डॉ. अम्बेदकर'
की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
Comments
Post a Comment