कॉर्नवालिस ने स्थाई बन्दोबस्ते
कॉर्नवालिस ने स्थाई बन्दोबस्ते क्यों लागू किया?
बंगाल मे 1793 ई. में भूराजस्व व्यवस्था लागू करने के
मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए|
उतर-
1.
कॉर्नवालिस के अनुसार भूमि पर केबल
राज्य का अधिकार है ओर जमीन्दार केवल कर वसूलने वाला हे । सरकार उन्हें जब चाहे हटा सकती है। अत: सरकार जमीन्दारों या
किसानों में से किसी के साथ प्रबन्ध कर सकती है
2.
1790 ई. में एक योजना प्रस्तुत की जिसके अनुसार जमींदारों को भूमि-स्वामी
3.
स्वीकार करते हुए एक निश्चित लगान के
बदले उनके साथ 10 वर्षों के लिए भूमि-प्रबन्ध किया गया।
4.
किन्तु कॉर्नवालिस जमींदारों के साथ भूमि का स्थायी प्रबन्ध करना चाहता था क्योंकि उसके
विचार में 10 वर्षो कि अल्प अवधि में कोई भी जमींदार भूमि में
स्थायी सुधार करने का प्रयास नहीं करना चाहेगा।
5.
अतः 1790 ई.में जमींदारों के साथ 10 वर्षों के लिए प्रबन्ध को कम्पनी के
निर्देशकों की स्वीकृति से 1793 ई. को स्थायी घोषित कियां। 22 मार्च, 1793 ई. के एक अध्यांदेश के द्वारा स्थायी प्रबन्ध लागू कर दिया गया | भूराजस्व की यह व्यवस्था देश के स्वतंत्र होने तक बनी रही।
6.
स्थाई प्रबन्ध के द्वारा कॉर्नवालिस का
उद्देश्य भारत में जमींदारों के रूप में एक ऐसे वर्गों की स्थापना करना था जो ब्रिटिश सरकार के प्रति
वफादार हों। इस व्यवस्था ने राजा, तालुकदार एवं जमींदारों का एक ऐसा वर्ग उत्पन्न किया जिसका समाज पर प्रभुत्व था। ।
7.
स्थाई प्रबन्ध के द्वारा कॉर्नवालिस
प्रतिवर्ष लगान वसूली के झँझट, परेशानी, अनावश्यक व्यय एवं समय कि बर्बादी से बचना चाहता था।
8.
भूमि कर निश्चित हो जाने और स्थायी
बन्दोबस्ती के कारण अधिक आमदनी के लिए जमींदारों को अधिक परिश्रम एवं पूँजी लगाने की प्रेरणा मिली। फलस्वरूप उपज में वृद्धि हुई।
9.
इस व्यस्था 'ने कम्पनी की लोकप्रियता में वृद्धि की
तथा स्थायित्व एबं दृढ़ता की भावना प्रदान की।
कॉर्नवालिस द्वारा स्थापित स्थायी प्रबन्ध का उद्देश्य क्या था?
उतर-
स्थायी प्रबन्ध के द्वारा कॉर्नवालिस प्रति वर्ष लगान वसूली के झंझट, परेशानी, अनावश्यक व्यय एंव समय की बर्बादी से बचना चाहता था।
इसके अतिरिक्त स्थायी प्रबन्ध के द्वारा कॉर्नवालिस का उद्देश्य भारत
में जमींदारों के रूप में एक ऐसे वर्ग की व्यवस्था
करना था जो ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार रहता। इस व्यवस्था ने राजा, तालुकदार एंव जमींदारों का एक ऐसा वर्ग उत्पन्न किया जिसका समाज पर प्रभुत्व था।
प्रश्न: स्थायी बंदोबस्त की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा, जमींदारों के साथ कॉर्नवालिस द्वारा किये गये स्थायी भूमि प्रबन्ध
(इस्तमरारी) का वर्णन करें।
उत्तर ; (i) बंगाल में भूमि प्रबन्ध निश्चित करने के उद्देश्य से 1790 ई. में कॉर्नवालिस ने एक योजना प्रस्तुत की जिसके अनुसार जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार
करते हुए एक निश्चित लगान
के बदले उनके साथ 10 बर्षों के लिए भूमि प्रबन्ध किया गया।
ii. इसके लिए भूमि की कोई नाप नहीं करवायी गयी और न भूमि की उर्वरता ही
निश्चित की गयी।
iii.किन्तु कॉर्नवालिस जमींदारों के साथ भूमि का स्थायी प्रबन्ध करना
चाहता था क्योंकि उसके बिचार में दो बर्षो की अल्प अवधि में कोई भी जमींदार भूमि में स्थायी
सुधार करने का प्रयास नहीं करेगा।
iv.इस प्रकार 1790 ई. में जमींदारों के साथ 0 वर्षों के लिए किये गये प्रबन्ध को
निर्देशकों की स्वीकृति से 1793 ई. में स्थायी घोषित किया। 22 मार्च, 1793 ई. से स्थायी प्रबन्ध या इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू कर दिया।
v. भूमि के इस स्थायी प्रबन्ध या इस्तमरारी
बन्दोबस्त के द्वारा जमींदार भूमि के स्वामी स्वीकार किये गये। भूमि पर उनका अधिकार पैतृक हो
गया। किसानों की स्थिति मात्र रैयत की थी। उनकी भूमि से सम्बन्धित तथा अन्य परम्परागत अधिकारों
का भी हरण कर लिया गया।
vi. जमीदारों को एक निश्चित अवधि के अन्दर बसूल किये गये लगान का 10/11 भाग कंपनी को देना था और 1/11 भाग अपने खर्च के लिए रखना था। ;
vii.लगान को राशि निश्चित कर दी गयी थी। निश्चित समय पर लगान न चुकाने की
स्थिति में जमींदारों की जमींदारी की नीलामी कर
देने की भी व्यवस्था की गयी। किसानों द्वारा जमींदारों को दी जानेवाली लगान की राशि पट्टे में लिख दी जाती थी।
प्रशन : स्थायी प्रबन्ध के गुण-दोषों का वर्णन करे।
उत्तर : स्थायी प्रबन्ध के गुण :
(i) अब राज्य की आय निश्चित हो गयी, क्योंकि जमीदारों द्वारा लगान संग्रह कर सरकारी खजाने में जमा करवाना निश्चित था।
(ii) अब कम्पनी को बार-बार लगान निश्चित करने की परेशानी से छुटकारा मिल गया। इस व्यवस्था ने कम्पनी
को आर्थिक रूप से सुदृढ़ कर
दिया।
(iii) स्थायी प्रबन्ध से जमींदारों को विशेष लाभ हुआ। भूमि पर उनका
वबंशानुगत स्वामित्व स्थापित
हो गया। जमीन के स्वामी हो जाने के पश्चात् जमींदारों ने कृषि के
विकास में अपनी अभिरुचि प्रदर्शित की
क्योंकि उत्पादन में वृद्धि होने से उनके लाभांश में भी वृद्धि होने
की सम्भावना थी।
iv. भूमि का एक बड़ा हिस्सा जो जंगलों से आच्छादित था, जमींदारों के सहयोग से कृषि योग्य बनाया
गया।
v.जमींदारों के हाथों से प्रशासनिक अधिकारों के हरण के
कारण उन्होंने कृषि में ध्यान दिया, जिसके परिणामस्वरूप बिहार एंव बंगाल की आर्थिक स्थिति में सुधार आया।
vi. इस व्यवस्था से कम्पनी को राजनीतिक लाभ
भी हुए। जमींदारों के रूप में ब्रिटिश राज के कट्टर समर्थकों का एक बड़ा वर्ग
पैदा हुआ। सिपाही विद्रोह के समय
जमींदारों ने ब्रिटिश सरकार का साथ दिया।
स्थायी प्रबन्ध के दोष :
(i) इस व्यवस्था का तत्कालीन परिणाम जमींदारों के लिए हानिकारक
सिद्ध हुआ। यदि किसी कारण से जमींदार किसानों से भूमि कर वसूल करने
में असमर्थ रहे तथा समय पर
सरकार को धन नहीं दे सके तो उनकी जमींदारियाँ बेच दी गयीं और इस
प्रकार बहुत से जमींदार प्रारम्भ
में बेघर-बार हो गये।
(॥) कुछ जमींदारों को छोड़कर अधिकांश जमींदार आयरलैण्ड के जमींदारों
की
भाँति अनुपस्थित भू-स्वामी बन गये।
(iii) काश्तकारों की स्थिति विशेष रूप से
दयनीय हो गयी। उन्हें जमींदारों की दया पर पूर्णरूपेण छोड़ दिया गयां जो किसी भी समय कानून
की एक छोटी-सी भूल के
द्वारा भूमि से बेदखल किये जाते थे।
(iv) भूमि की उपज में वृद्धि होने पर भी
सरकार को कोई विशेष लाभ न था। सरकार ने सदा के लिए प्राप्त वृद्धि का अपना भाग खो दिया।
प्रश्न : स्थायी प्रबन्ध ने जमींदारों को किस प्रकार प्रभावित किया?
प्रएन : राजस्व राशि के भुगतान में जमींदार क्यों चूक जाते थे?
अथवा, ब्रिटिश शासन में लगान के भुगतान में जमींदार क्यों दोषी होते थे?
अथवा, स्थायी बन्दोबस्त ( इस्तमरारी ) के बाद बहुत-सी जमींदारियाँ क्यों
नीलाम कर दी गयीं?
उत्तर : स्थायी प्रबन्ध के लागू होने के पश्चात् जमींदारं कम्पनी
द्वारा निर्धारित राजस्व की रकम को अदा करने में चूकने
लगे। फलतः लगान की बकाया रकम में बढ़ोत्तरी होती गयी और परिणामस्वरूप उसकी जमींदारी नीलाम होने लगी। लगान चुकाने में जमींदारों की असफलता के कई
कारण थे -..
i.
प्रारम्भिक लगान की माँग बहुत अधिक थी।
ii.
यह ऊँची माँग 1790 ई. के दशक में लागू-की गयी थी जब कृषि
की उपज की कीमतें कम थीं | जिससे रैयतो के लिए, जमींदार को उनकी देय राशियाँ चुकाना
कठिन था। जब जमींदार स्वयं किसानों से राजस्व बसूल नहीं कर सकता था तो वह आगे
कम्पनी को अपनी निर्धारित राजस्व की रकम कैसे अदा कर सकता था।
iii.
राजस्व या लगान आसमान था, फसल अच्छी हो या खराब राजस्व का ठीक समय
पर भुगतान आवश्यक था। वस्तुतः सूर्यास्त विधि के अनुसार, यदि निश्चित तिथि को सूर्य के अस्त होने
तक भुगतान नहीं होता था तो जमींदारी को नीलाम किया जा सकता था।
iv.
स्थायी प्रबन्ध के प्रारम्भ में
जमींदारों की शक्ति या अधिकार को रैयत से राजस्व इकट्ठा करने और अपनी जमींदारी का
प्रबन्ध करने तक ही सीमित कर दिया था।
प्रश्न : ब्रिटिश द्वारा बंगाल में प्रारंभ किये स्थायी बन्दोबस्त (
इस्तमरारी ) की असफलता के कारणों की व्याख्या कीजिए।
अथवा, ईस्ट इंडिया कम्पनी भूराजस्व नीति के प्रभावों का वर्णन करें।
अथवा, स्थायी प्रबन्ध के दोषों का उल्लेख करें।
उत्तर : स्थायी प्रबन्ध के दोष :
i.
इस व्यवस्था का तत्कालीन परिणाम
जमींदारों के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ। यदिं किसी कारण से
जमींदार किसानों से भूमि कर वसूल करने में असमर्थ रहे तथा समय पर सरकार को घन नहीं दे सके तो उनकी जमींदारियाँ नीलाम कर दी
गयीं और इस प्रकार बहुत से जमींदार प्रारम्भ में बेघर-बार
हो गये।
ii.
कुछ जमींदारों को छोड़कर अधिकांश
जमींदार आयरलैण्ड के जमींदारों की भाँति अनुपस्थित भ्रू-स्वामी बन गये। अतः भूमि को उन्नत एवं विकसित करने में तथा उपज
बढ़ाने में कोई अभिरुचि उन्होंने प्रदर्षित नहीं कि |
iii.
काश्तकारों की स्थिति विशेष रूप से
दयनीय हो गयी। उन्हें जमींदारों की दया पर पूर्णरूपेण छोड़ दिया गया जो किसी भी
समय कानून की एक छोटी-सी भूल के द्वारा भूमि से बेदखल किये जाते थे। यद्यपि दीवानी
अदालतों से किसान अपनी सुरक्षा प्राप्त कर सकते थे, परन्तु न्याय की यह पद्धति किसानों के
लिए बहुत महँगी प्रमाणित हुई।
iv.
भूमि की उपज में वृद्धि होने पर भी सरकार
को कोई विशेष लाभ न था। सरकार ने सदा के लिए प्राप्त वृद्धि का अपना भाग खो दिया।
कंपनी के अधिकारियों की सोच यह थी कि जमींदार स्वयं को सुरक्षित
महसूस करते हुए निवेश करेंगे। किन्तु ऐसा नहीं हुआ। यह
व्यवस्था भी असफल हुई। इसके दो प्रमुख कारण इस प्रकार थे -
(क) प्रारंभिक माँगें अधिक थीं। कंपनी का अनुमान था कि क्रमशः कृषि
में सुधार होगा, उपज बढ़ेगी तो दरों का औचित्य सिद्ध हो
जायेगा। इस प्रकार जमींदारों का बोझ कम हो जायेगा।
(ख) राजस्व असमान था। फसल के प्रकार से राजस्व पर कोई अंतर नहीं पड़ता
था। निर्धारित तिथि पर सूर्यास्त तक राजस्व का भुगतान
आवश्यक था नहीं तो जमींदारी नीलाम कर दी जाती थी।
प्रश्न : स्थायी बन्दोबस्त कब और कहाँ लागू किया गया?
उत्तर : स्थायी बन्दोबस्त 793 ई. में बंगाल में लागू किया गया।
प्रश्न : भू-राजस्व के स्थाई बन्दोबस्त ( इस्तमरारी बन्दोबस्त ) को
बंगाल से बाहर अन्य किसी क्षेत्र में क्यों लागू नहीं किया गया? दो कारण बताइए।
उत्तर:
i.
1810 के बाद खेती की कीमतें बढ़ गयी, जिससे उपज के मूल्य में वृद्धी हुई और
बंगाल के जमींदारों की आय बढ़ गयी, किंतु कंपनी का आय नहीं बढ़ी।
ii.
अपने पहले के अनुभवों के आधार पर कंपनी
के अधिकारी अपनी नीतियों में परिवर्तन करना चाहते थे
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