खिलाफत आन्दोलन

 

प्रशन : खिलाफत आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?

अथवा, खिलाफत आंदोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

उत्तर :

1.    टर्की के सुलतान को मुस्लिम संसार के खलीफा अर्थात्‌ धार्मिक प्रमुख

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन ने यह घोषणा की कि युद्ध के बाद टकी का की कलकप

पद को समाप्त कर दिया जाएगा।

2.    ब्रिटेन की इस घोषणा से भारतीय मुसलमानों के धार्मिक मनोभावों को ठेस पहुँचा। अतः उन्होंने

टकीं के विभाजन तथा खलीफा पद की समाप्ति के खिलाफ आंदोलन चलाने का निश्चय किया जो

खिलाफत आंदोलन के रूप में सामने आया। चूँकि यह खलीफा पद के संरक्षण के पक्ष में किया गया

आंदोलन था। अत: इसे खिलाफत आंदोलन कहा गया।

3.    आंदोलन में गाँधीजी के भाग लेने से मुसलमानों की राजनीतिक गतिविधियों में कुछ सक्रियता

आई। कांग्रेस अधिवेशनों में मुसलमानों की संख्या और प्रभाव दोनों में वृद्धि हुई आंदोलन ने

हिन्दू-मुस्लिम एकता को मजबूत किया क्‍योंकि भारत में दोनों एक ही शक्ति के विरुद्ध कार्य कर रहे थे।

4.    आंदोलन के कार्यक्रमों में सरकारी सेवाओं का बहिष्कार, सरकारी स्कूलों तथा कॉलेजों का

परित्याग, धरना, प्रदर्शन, हड़ताल आदि शामिल थे।

5.    टर्की के विभाजन और खलीफा पद की समाप्ति के बाद यह हिन्दू-मुस्लिम एकता भी जल्दी ही

समाप्त हो गईं बस्तुत: भारतीय मुसलमानों का टर्की के प्रति दृष्टिकोण राजनीतिक न होकर धार्मिक था।

प्रश्न : उन घटनाओं का वर्णन करें जिसने गाँधी जी को असहयोग आन्दोलन के लिये प्रेरित किया |

अथवा, असहयोग आन्दोलन के कारणों का वर्णन करें।

उत्तर : घटनाएँ जिनके परिणामस्वरूप असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया गया थीं

निम्नलिखित थीं -

1.    प्रथम विश्व युद्ध : प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीयों ने अंग्रेजों को सहयोग दिया था ताकि युद्ध के पश्चात वह भारतीयों के हितों की रक्षा करेंगे। परन्तु युद्ध के पश्चात अंग्रेजों 1919 ई. के कानन द्वारा किये गये सुधारो  से भारतीय संतुष्ट नहीं हुए ।

2.    रॉलेट एक्ट : 1914-1918 के विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था

और बिना जाँच के कारावास की अनुमति दे दी थी। बाद में कठोर उपायों को जारी रखने के लिए सर

सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली समिति के सुझाव पर भारतीयों के विरोध के बावजूद रॉलेज कट पास

किया गया। इसके अन्तर्गत राजनीतिक गतिविधियों के विरूद्ध कठोर कार्रवाई करने की शक्तियों सरकार

को दे दी गयीं। गाँधी.जी ने इस कानून का विरोध करने का निश्चय किया

3.    जलियाँवाला बाग हत्याकांड : पंजाब में रॉलेट कानून के विरोध में प्रदर्शन और हड़ताले

हुई। सरकार द्वारा कठोरता से इन गतिविधियों का दमन करने की नीति अपनायी गयी। अमृतसर में

कांग्रेसी नेता डा. सत्यपाल और डा. किचलू को गिरफ्तार किया गया। इन घटनाओं के परिणामस्वरूप

पंजाब में स्थिति विस्फोटक बन गई। अन्त में 13 अप्रैल 1919 ई. को जनरल डायर द्वारा जलियाँवाला

बाग में एक राष्ट्रवादी सभा पर गोली चलाने से 400 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई।

4.    भारतीय मुसलमानों में असन्तोष : विश्व युद्ध में तुक्कीं की पराजय से भारतीय मुसलमानों

को आशंका थी कि ब्रिटिश सरकार तुर्की के सुल्तान जोकि मुसलमानों का धार्मिक नेता अर्थात खलीफा

था, से कठोर संधि करेगी। अतः वह ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालना चाहते थे ताकि कठोर संधि न की

जा सके। वह खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ करना चाहते थे। गाँधी जी इस अवसर का लाभ उठाकर

हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करना चाहते थे।

5.    स्वराज्य : कांग्रेस द्वारा स्वराज्य की माँग का प्रस्ताव पास किया गया। गाँधी जी ने कहा कि

अगर असहयोग का ठीक से पालन किया गया तो भारत एक वर्ष के भीतर स्वराज्य प्राप्त कर सकेगा।

इस प्रकार विश्व युद्ध की समाप्ति पर भारतीयों के हितों की रक्षा न करना, रॉलेज कानून, जलियाँवाला बाग हत्याकांड, कांग्रेस द्वारा स्वराज्य की प्राप्ति का प्रस्ताव वे मुख्य घटनाएँ थीं जिनके परिणामस्वरूप असहयोग आन्दोलन चलाया गया।

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