रैयतवाड़ी व्यवस्था
प्रश्न : रैयतवाड़ी व्यवस्था पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
अथवा, रैयतवाड़ी व्यवस्था में किसानों के शोषण पर एक निबंध लिखें।
अथवा, दक्कन में रैयतवाड़ी व्यवस्था क्यों लागू की गयी? इसके क्या परिणाम हुए।
उत्तर : रैयतवाड़ी व्यवस्था को मद्रास, बंबई, बरार तथा असम में लागू किया गया।
अंग्रेजों ने बिचौलियों को हटा कर राजस्व में लाभ के लिए इसे लागू किया। इससे
अंग्रेजों का संपर्क सीधे रैयत
अर्थात् किसान से हुआ तथा राजस्व भी अधिक प्राप्त हुआ। इस व्यवस्था
में -
(1) किसानों को उनके अपने जमीन का मालिकाना हक देकर सीधे किसानों से
राजस्व वसूली किया गया।
(2) इस व्यवस्था के द्वारा एक ही बार में 20-40 वर्षों के लिए राजस्व का निर्धारण कर दिया जाता था।
(3) इसे मद्रास, बंबई, बरार तथा असम में लागू किया गया।
(4) इस व्यवस्था के
अंतर्गत 51 प्रतिशत भूमि थी।
(5) इस व्यवस्था के मुख्य दोष- राजस्व की ऊंची दर तथा जोतों का छोटा होते जाना था।
रैयतवाड़ी व्यवस्था की कमियाँ
1.
सरकार की माँग पर कुल राजस्व 50 से 55 प्रतिशत तक तय किया गया जो बहुत ही ऊँची दर थी। अच्छे फसल के समय किसानों के पास अपने लिए विशेष नहीं बच पाता
था तथा खराब फसल के समय तो उसकी स्थिति अत्यन्त
दयनीय हो जाती थी।
2.
वस्तुतः यह व्यवस्था परंपरागत-ग्रामीण
व्यवस्था पर एक प्रहार था। इस व्यवस्था के कारण भूमि छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित होती चली गई।
प्रश्न : रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या थी? उसकी विशेषता बताइए।
उत्तर : बम्बई दक्कन में ब्रिटिश द्वारा लागू की गयी राजस्व प्रणाली
का नाम रैयतवाड़ी था।
इस प्रणाली के अंतर्गत राजस्त्र की राशि सीधे रैयत के साथ तय की जाती
थी। भूमि की किस्मों के आधार पर औसत आय का अनुमान करके राजस्व तय किया जाता था। प्रत्येक 30 वर्षों में भूमि का सर्वेक्षण किया जाता था।
प्रश्न : रैयतवाड़ी व्यवस्था कहाँ-कहाँ लागू की गई?
उत्तर : बम्बई, असम और मद्रास में।
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