सविनय अवज्ञा आंदोलन

 

प्रएन : सविनय अवज्ञा आंदोलन क्या था? यह क्‍यों शुरू किया गया।

उत्तर : अत्यधिक महंगाई से उत्पन्न अराजक स्थिति के बीच अँगरेजों द्वारा नमक कानून लागू करने

से जनता में आक्रोश व्याप्त था। गाँधी जी ने आन्दोलन-को हिंसात्मक होने से बचाने और सरकार पर

दबाव बनाने के उद्देश्य से डांडी यात्रा के द्वाट सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। यह 1930 से

1934 ई. तक चला। सविनय अवज्ञा आंदोलन गाँधी-वादी प्रतिरोध का एक रूप था।

सविनय अवतज्ञा से गाँधी जी का अभिप्राय अँगरेजों की शांतिपूर्वक अवज्ञा करना अथवा उनके

आदेशों की अवहेलना करना था। उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ डांडी मार्च एवं नमक कानून

का उल्लंघन कर किया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन, असहयोग आंदोलन से इस अर्थ में भिन्‍न था कि जहाँ असहयोग आंदोलन

में लोगों को अँगरेजों के साथ सहयोग करने से मना किया गया था वहीं सविनय अवज्ञा आन्दोलन में

लोगों को औपनिवेशिक कानूनों का उल्लंघन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। ,

सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत देश के विभिन्‍न भागों में नमक कानून का उल्लंघन किया गया

सरकारी नमक के कारखानों के सामने प्रदर्शन किया गया, शराब की दुकानों की पिकेटिंग की ग्व

विदेशी वस्त्रों की होली जलायी गयी, किसानों ने लगान तथा चौकीदारी कर चुकाने से इन्कार कर दिया,

गाँवों में तैनात कर्मचारी इस्तीफे देने लगे तथा लोगों ने लकड़ी तथा अन्य बनोत्पादों को बीनने तथा

मवेशियों को चराने के लिए आरक्षित वनों में घुसकर बन कानूनों का उल्लंघन करना प्रारंभ कर दिया।

इस प्रकार डांडी मार्च से शुरू हुए सबिनय अवज्ञा आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य को हिला कर रख दिया

प्रश्न : गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन क्‍यों शुरू किया?

उत्तर : सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रस्ताव काँग्रेस ने लाहोर अधिवेशन (दिसम्बर, 929 ई.)

में पारित किया था। इस आंदोलन को शुरू करने के पीछे कई राजनीतिक, आर्थिक और ऐतिहासिक

कारण थे। इरविन औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने के बारे में गाँधी जी को कोई सुनिश्चित

आश्वासन देने से कतरा गया।

लाहोर अधिवेशन (दिसम्बर, 929 ई.) में काँग्रेस ने सरकार को नेहरू रिपोर्ट एक सुनिश्चित

अवधि के अन्तर्गत मान लेने की चेतावनी दी थी तथा यह भी कहा था कि यदि वह इस रिपोर्ट को

स्वीकार नहीं करती है तो काँग्रेस आंदोलन करने के लिए बाध्य होगी। काँग्रेस के इस चेतावनीपूर्ण

अनुरोध का ब्रिटिश सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उसने प्रस्ताव (नेहरू रिपोर्ट) को स्वीकार नहीं

गे भारत के नवयुवा 'औपनिवेशिक स्वराज्य' की माँग को त्यागकर पूर्ण स्वतंत्रता की माँग करने लगे।

 

सन्‌ 1930-31 ई. में देश की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब हो गयी थी। आर्थिक मंदी के कारण

बस्तुओं की कीमते बहुत बढ़ गयी थी। साधारण कृषक तन ढँकने के-लिए एक गज कपड़ा अथवा एक

बोतल किरोसिन तेल खरीदने में असमर्थ हो गया था। उनकी आर्थिक स्थिति इतनी शोचनीय हो गयी

थी कि वे लगान अथवा ऋण नहीं चुका सकते थे। इसी समयनमक कानून' ने आग में घी का काम

किया।

उद्योग-धंधों से जुड़े श्रमिकों की दशा भी शोचनीय हो गयी थी। उद्योगों के स्वामी उनका शोषण

कर रहे थे। प्रतिक्रियास्वरूप उद्योगों में लम्बी-लम्बी हड़ताले होने लगीं। श्रमिकों में बर्ग-चेतना भावना

का तीब्रता के साथ विकास हुआ।

उपर्युक्त कारणों से देश की स्थिति अत्यंत विस्फोटक और विप्लवकारी हो गयी थी। हिंसात्मक

क्रांति या संघर्ष की सम्भावना प्रबल हो गयी थी। महात्मा गाँधी ने अपनी दूरदर्शिता से आयी

विस्फोटक स्थिति को भाँप लिया था। अतः उन्होंने हिंसात्मक उपद्रवों और संघर्षों को रोकने के

साथ-साथ, सरकार पर बाध्यकारी दबाव उत्पन्न करने और देश को स्वाधीनता के पथ पर दृढ़्तापूर्वक

तेजी से अग्रसर करने के उद्देश्य से 'सविनय अवज्ञा आंदोलन ' की घोषणा कर दी और सभी नेताओं

और भारतीयों को एकजुट होकर इस आंदोलन को सफल बनाने का आह्वान दिया।


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