सुभाष चन्द्र बोस
प्रश्न: सुभाष चन्द्र बोस के कार्यो का
संक्षिप्त विवरण दीजिए
उत्तर : आजाद हिन्द फोज के प्राणाधार
सुभाष चन्द्र बोस जिन्हें भारतीय जनता ने आदरपूर्वक
'नेताजी' का सम्बोधन दिया, राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी नेताओं में
से एक थे। उन्होंने 1921
ई. में
I.C.S की नौकरी से
त्यागपत्र देकर राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने देशबन्धु चित्तरंजन दास तथा
गाँधीजी से भेंट की। उन्होंने चित्तरंजन
दास को अपना राजनीतिक गुरु माना और उनके जीवनपर्यन्त उनके
सहयोगी के रूप में ही कार्य किया।
उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया ओर जेल भी गये।
1928 ईं. के कलकत्ता काँग्रेस अधिवेशन में उन्होंने प्रमुख भाग लिया तथा
स्वतत्रता का भ्रस्तात
प्रस्तुत किया। उन्होंने 'पूर्ण स्वराज्य' पर जोर दिया। सुभाष
चन्द्र बोस का विश्वास था कि अँगरेजों को
भारत से निकालने के लिए शक्ति प्रयोग की
आवश्यकता है। साधनों की पवित्रता पर वे आवश्यकता से
अधिक जोर नहीं देते थे। 938 ई. में वे काँग्रेस
के अध्यक्ष निर्वाचित हुए तथा 939 ई. मे वे महात्मा
गाँधी के प्रबल विरोध के बावजूद वे पुनः
काँग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हुए। बाद में गाँधीजी से इनका मतभेद
हो गया और इन्होंने फारवर्ड ब्लॉक नामक
पार्टी का गठन किया।
द्वितीय महायुद्ध आरम्भ होने पर वे
जापान गये। वहाँ उन्होंने सितम्बर 942 ई. में आजाद हिन्द
फौज (.]९.४.) का पुनर्गठन किया। इनकी
सहायता से अँगरेजों के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध एवं विद्रोह की
योजना बनायी गयी। जर्मनी और जापान ने भी
अँगरेजों के विरुद्ध संघर्ष में समर्थन का आश्वासन दिया।
नेताजी ने स्वतंत्र भारत की अस्थाई
सरकार बनाने और फौज लेकर भारत जाने की घोषणा की।
उन्होंने 'दिल्ली चलो' का नारा दिया।
उन्होंने भारत के लोगों से कहा कि-“तुम मुझे खून दो, में तुम्हें
आजादी दूँगा।” प्रारम्भ में आजाद
हिन्द फौज को जापान की सहायता से अँगरेजों के विरुद्ध बहुत
सफलता मिली। यह फौज ब्रिटिश सेनां को
परास्त करती हुई असम की सीमा तक पहुँच गयी। परन्तु
विश्वयुद्ध में जापान की हार और
आत्मसमर्पण से नेताजी के अभियान को गहरा धक्का लगा और इस
न् पा दुर्भाग्यवश 3 हम एक हवाई-दुर्घटना
में नेताजी की भी मृत्यु हो गयी।
आजाद हिन्द फौज के बहुत अफसर जिनमें
शाहनवाज, ढिल्लन और सहगल प्रमुख थे गिरफ्तार कर
लिये गये। आजाद हिन्द फौज के इन तीन
अधिकारियों को मृत्यु दण्ड की सजा सुनायी गयी। सारे देश में
इसकी जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुईं।
जनाक्रोश को देखते हुए ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा और विवश होकर
वायसराय को अपने विशेष अधिकारों का
प्रयोग कर उन्हें मुक्त करने का आदेश देना पड़ा।
सुबाश चन्द्र बोस और आज़ाद हिन्द
फौज का राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में एक पृथक स्थान है।
इसका इतिहास एवं राष्ट्रीय आन्दोलन में
इसकी भूमिका अँगरेजों के विरुद्ध भारतीयों के संघर्ष का पृथक
दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
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